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लेखनी कविता -23-Aug-2022


तेज़ किरणों की तपन और यह गर्म धरा

इस गर्मी से हो रहा प्रत्येक मानव अधमरा


जंगल काट कर पहले बना लिए आशियाने

लगा सेक कुदरत का तो लगा आंसू बहाने


फिर भी इंसान खुदगर्जी में कैसे ग़लती माने

अभी भी लगा है देखो दोष कुदरत का बताने


अंदर ही अंदर मैल भरी और कपड़े पहने स्वेत

मौका है संभाल लो, चिड़ियां चुग ना जाए खेत


लालसा नहीं छोड़ रहे खुद को सर्वोच्च बनाने की

स्वार्थ और लालसा ही वजह है आफत बुलाने की

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12 Comments

Mithi . S

26-Aug-2022 03:01 PM

Bahut achhi rachana

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Pankaj Pandey

25-Aug-2022 02:25 PM

Nice

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Khushbu

24-Aug-2022 05:42 PM

शानदार

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